अहंकार को मिटाते मिटाते धर्म अहंकार को बडाने मे लगे।
धर्म का सबसे अहम कार्य घमंड अहंकार को समाप्त करना ।घमंड को खत्म करने के लिए भगवान ने अवतार लिए रावण ,हिरण्यकशिपु, दुर्योधन,कंस जैसे अनेको को समाप्त किया गया। धर्म का पहला असर व्यक्ति का अहंकार समाप्त होने लगता है ।
लेकिन अब धार्मीक कहलाने वाले लोगो ने अहंकार दिखाने पर इनाम रखा है। महावीर स्वामी जी को अहंकार के विरूद्ध कह सकते है जिन्होने हर वस्तु त्याग दी कठिनतम तप किए और अब उन्ही के मंदिरो मे अहंकार से बोली लगाई जाती है ध्वजा कि आरती कि मंदिर निर्माण कि ।उची बोली लगाकर वह समाज के सामने आरती कर अहंकार मे रहता है देखो तुम्हारी क्या औकात धन दौलत से मे धर्म भी खरीद लेता हू। यदी व्यक्ति मे अहंकार नही होता तो वह मंदिर मे कभी भी एक दीपक लेकर आरती कर सकता था और बोली भी नही लगानी पडती दान पेटी मे डाल देता । लेकिन जब अहंकार होता है तो वह दिखाना चाहता है समाज के सामने । आज हर धर्म मे समाज मे हर तरह कि बोली लगाकर समाज मे अहंकार को प्रोत्साहित पुरस्कृत किया जाता है। समाज मे धन इक्कठा करने के लिए धर्म को हि निगल जाते है और संत कहलाते है । गीता मे कृष्ण कहते है दान छुपा कर दिया जाए किसी को पता न चले लेकिन वही धार्मिक लोग अहंकार कि बोली को दान कहने लगे ।
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