Wednesday, May 27, 2020

अगर आप 17 वीं या 18 वीं शताब्दी के दस्तावेज पढ़ेंगे तो एक बात पायेंगे 

हम सबको अपने पुराने काल में भारत में लोहे और इस्पात के उत्पादन और उसकी क्षमता के बारे में अच्छे से पता ही होगा ✔️
अपने यहाँ बनने वाला लोहा विश्व प्रसिद्ध था अभी काफी वर्ष पहले एक
शोध से भी पता चला है कि भारत में लोहे का उत्पादन उत्तर प्रदेश के अतिरंजन खेड़ा जैसे स्थानों पर कम से कम 12वीं शताब्दी से हो रहा है 😳👍🏻

लेकिन जो बात काफी कम लोग ही जानते हैं कि 1800 के आस पास भी  देश में यह उद्योग काफी बड़े क्षेत्र में खूब फल फूल रहा था 👌🏻 और उत्पादन की जो तकनीकी थी वो भी अपने चरम पर थी.

एक मोटा मोटा अनुमान है कि 1800 के आस पास देश में ऐसी कोई 10 हजार भट्ठियाँ थी जहाँ लोहे और इस्पात का उत्पादन होता था और एक साल में 35 से 40 सप्ताह काम कर बीस टन इस्पात एक भट्ठी से पैदा किया जाता था ✅ और सबसे बड़ी खास बात इन भट्ठियों की इनका वजन इतना हल्का होता था कि किसी बैलगाड़ी से लादकर इन्हें कहीं भी ले जा सकते थे😳

और बहुत से लोगों को जानकर यह आश्चर्य होगा कि 18वीं शताब्दी में भारत में कृत्रिम तरीके से पानी को ठंडा करके बर्फ बनाई जाती थी और ये कोई ठंडे इलाके में नहीं बनायी जाती थी ये इलाहबाद जैसे गरम इलाकों में बनाई जाती थी 👌🏻✔️

और 1800 से पहले एक अंग्रेज कलेक्टर था उसने भारत के खेती के औजार जिसमें हल भी शामिल था मद्रास से इंग्लैंड भेजे थे ताकि वहाँ के औजारों में कुछ सुधार किया जा सके 👍🏻
तो ये थी हमारी तब की तकनीकी

हमने कहा आपसे सिर्फ दो शताब्दी पहले भारत के ज्यादातर हिस्सों में एक क्रियाशील समाज दिखाई देता था , अब इसका मतलब ये नहीं है कि उसकी अपनी समस्याएँ नहीं थी मतलब साफ है कि उस समाज को भी आंतरिक युद्द झेलने पड़े और सामाजिक और राजनीतिक घटनाएँ भी होती थी, एक समाज दूसरे समाज पर आक्रमण करता और उस पर कब्जा करके लूटपाट शुरू कर देता और यही वजहें थीं कि उसने राज्य व्यवस्था और समाज के बीच एक खाईं बना दी और यही वजह भी है कि समाज टूटा और जिसका खामियाजा आज भी लोग भुगत रहे हैं.

आज फिर उभरते भारत को तोड़ने के लिए लोग फिर से नए नए षड़यंत्र कर रहे हैं लेकिन वो षड़यंत्रकारी फिर मुँह के बल गिरेंगे और खत्म होंगे.

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