पिछले 55 दिनों में इस देश मे जो हुआ वो एक बहुत बड़ा मजाक बन कर रह गया...

देश को lockdown में धकेलने का फैसला जब केंद्र ने महामारी और मौत की आहट के चलते लिया होगा तब शायद केंद्र सरकार को अंदाजा ना होगा कि संघीय ढांचे के अंतर्गत राज्य अपने मूल कर्तव्यों का निर्वहन नही करेंगे और अपने नागरिकों को जो फ्री का राशन केंद्र दे रही थी वो भी  नही खिलाएंगे....माना कि lockdown अकस्मात था फिर भी राज्य सरकारे अगर चाहती तो देश की सुरक्षा के लिए 'जो जहा है वही रहे' का जैसे तैसे पालन करती...इसमें थोड़ी कठिनाई होती या हो सकता है चंद बहुमूल्य जाने भी चली जाती पर ये बंद का असर दिखता और पूरा देश अब तक इस विपदा से निपट चुका होता... पर ये एक आदर्श चित्रण है जो होना था पर हुआ नही...

उल्टा राज्य सरकारों ने भय का माहौल बनाया और मजदूरों का जो ऐतिहासिक पलायन हुआ वो अभूतपूर्व था....राज्य सरकारों के लिए भी ये राजनैतिक दृष्टि से सुविधाजनक था क्योंकि हर एक मजदूर की कहानी के माध्यम से केंद्र को दोषी ठहराना सरल था...अगर हर नागरिक और हर राहगीर के भोजन-पानी की व्यवस्था केंद्र की है तो राज्य सरकारों का अस्तित्व किस लिए है....पर ये सवाल इतना उठना ही नही था क्योंकि केंद्र को दोष देना सुविधाजनक था....

एक anti-national गठबंधन जो देश मे पिछले कई दशकों से सक्रिय था उसके लिए 2014 का चुनाव एक धक्का था, फिर 2019 में तो जनता की समझदारी ने उसको चारो खाने धूल चटा दी....पर वो मरा नही....वो मीडिया के कतिपय साथियों और घाघ राजनीतिझो के माध्यम से लगातार कोशिश करता रहा कि भारत की विकास यात्रा में कैसे लगाम लगे...कैसे पहिया रुके....कैसे गाड़ी बेपटरी हो....

जब इस महामारी में भी केंद्र ने सही समय पर सटीक कदम उठा लिया तो इस Cartel ने ये बहुत गजब खेल खेला.... मजदूरों का पलायन और उनके पाँव के छाले देख एक एक भारतीय द्रवित हो उठा.... उसके प्रेम के संस्कार भाव-विह्लल हो उठे और वो भी केंद्र  को धीरे धीरे कोसने लगा...वो ये भूल गया कि lockdown कोई हॉलिडे पैकेज नही है और उसका मूल उद्देश्य ही यही था कि जो जहा है वही रहे....वो ये भी भूल गया कि इस तरह वायरस भी travel कर रहा है...

एक एक गांव और शहर से गुजरता वो मजदूर अनजाने में अपने साथ वो जलजला भी ले आया है जो आने वाले दिनों में अपना विकराल रूप दिखायेगा... और अब वो देश विरोधी गठबंधन उन लाशों के फ़ोटो 24 घंटे दिखायेगा जो इस वायरस की वजह से और गांवों में इलाज की सुविधा ना होने की वजह से होगी.... हो सकता है कि मेरा ये लिखना बहुत ज्यादा नकरात्मक हो और ये भी हो सकता है कि ये उतना भयावह मंजर ना हो पर अभी इतना तो एक अटूट सत्य है कि हम 50 दिन अपने अपने घरों में कुर्बान करने के बाद भी हार की दहलीज पर खड़े है....

इसलिए मेरा मानना है कि  देश के प्रति जो भी नेक इरादे हो, वो इस बार मात खा चुके है....देश के प्रति प्रधानमंत्री के  संबोधनों में भी धीरे धीरे उनकी हताशा थोड़ी थोड़ी झलक रही थी....वो भी शायद अंदर अंदर समझ चुके है कि क्या खेल खेला गया है और आने वाले दिनों में उसके क्या परिणाम होने वाले है.... अच्छी नियत और नेक इरादे हमेशा सफल नही होते, यदा कदा ही होते है....

और मुझे लगता है कि अंत मे देश मे वही होगा जो कुछ विघटनकारी ताकते चाहती है... आखिर एक आदमी कब तक लोहा लेगा... पर दिल है कि मानता नहीं.....क्योंकि हमारे संस्कार बताते हैं कि हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठनुगा काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ, गीत नए गाता हूँ.......ये भावनाओं का बहाव है पर आशा और विश्वास है कि जीत जाएंगे हम तू अगर संग है......🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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